रायपुर. रावाभाठा फिल्टर प्लांट कैंपस में रहने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) के 17 अफसर-कर्मचारी पिछले सात सालों से बंगलों में मुफ्त की बिजली जला रहे हैं। इन लोगों को 150 से 210 रुपए महीने जैसे मामूली किराए पर निगम ने अपने बंगले दे रखे हैं।
इन बंगलों के लिए अलग से बिजली कनेक्शन लेने की बजाय अफसरों ने सीधे फिल्टर प्लांट में बिजली सप्लाई के लिए खींची गई 33 केवी की हाई टेंशन लाइन से कनेक्शन ले लिया है। एक भी बंगले में बिजली का पृथक मीटर नहीं है।
भास्कर के खुलासे से महापौर से लेकर आयुक्त भी हैरान हैं। उनका कहना है कि पीएचई के अफसरों को मकान के साथ मुफ्त बिजली देने का कोई करार नहीं हुआ था। इस पूरे मामले में वहां रहने वाले पीएचई अफसरों ने बिजली बिल की राशि की वसूली की जाएगी।
अफसरों का कहना है कि फिल्टर प्लांट पूरे एक कवर्ड कैंपस में है, इसलिए यहां एक ही मीटर का कनेक्शन लिया गया है। प्लांट के अंदर पंपिंग स्टेशन में पानी चढ़ाने और अन्य प्रोसेस के लिए 33 केवी की एचटी बिजली लाइन ली गई।
पीएचई के अफसरों ने इसी एचटी लाइन से ही केबल कनेक्ट करके मकानों में बिजली ले ली, जबकि उनको घरेलू सप्लाई के लिए अलग से मीटर लेकर सप्लाई हासिल करनी चाहिए थी। घरेलू और व्यवसायिक बिजली की दरों में भारी अंदर है।
स्थिति यह है कि पिछले सात सालों से निगम पानी के शुद्धिकरण और सप्लाई में लगने वाली बिजली के अलावा इन अफसरों के बंगलों में फूंकी जा रही बिजली का खर्च भी अपनी जेब से दे रहा है।
हैरानी की बात यह है कि भास्कर की पड़ताल के पहले तक निगम के किसी अफसर का ध्यान इन नहीं गया। जबकि निगम की कुछ बैठकें भी फिल्टर प्लांट कैंपस में हो चुकी हैं।
जल विभाग के अध्यक्ष जग्गू सिंह ठाकुर ने बताया कि निगम के वॉटर वक्र्स डिपार्टमेंट के अफसरों के रहने के लिए इन बंगलों को निगम ने बनवाया था। कुछ साल पहले केंद्र सरकार की जेएनएनयूआरएम योजना के तहत तीन सौ करोड़ की नई वॉटर सप्लाई स्कीम को मंजूर किया।
इसके तहत इंटेकवेल, फिल्टर प्लांट और 17 नई टंकियों का निर्माण शुरू हुआ। इस प्रोजेक्ट के लिए निगम को तकनीकी विशेषज्ञों की जरूरत थी। इसके लिए पीएचई के अफसरों की मदद ली गई। सारे बंगलों पर पीएचई ने कब्जा कर लिया।
महीने का बिल 40 लाख नगर निगम हर महीने 30 से 40 लाख रुपए महीने का फिल्टर प्लांट का बिजली बिल सीएसईबी को अदा करता हैं। इसमें पीएचई के अफसरों के 17 मकानों को सप्लाई होने वाली बिजली का बिल भी शामिल है।
अफसर इन मकानों में नाममात्र का किराया देकर बरसों से रह रहे हैं। उनकी तरफ से आज तक एक रुपए का बिजली बिल भी अदा नहीं किया गया।
मकानों में एसी, गीजर से लेकर सारी सुविधाएं भास्कर टीम ने गुरुवार को फिल्टर प्लांट के मकानों का मुआयना किया। अधीक्षण अभियंता आरके चौबे प्लांट के सबसे बड़े बंगले में रहते हैं। उनके मकान में एसी, फ्रिज, गीजर सहित तमाम तरह की सारी सुविधाएं मौजूद हैं।
चौबे के बंगले के परिसर में आउटडोर बैंडमिंटन कोर्ट तक बना है। एक मोटे अनुमान के अनुसार इन मकानों का हर महीने का बिजली बिल ही 25 हजार रुपए से ज्यादा आ रहा है।
इसका भुगतान निगम अपनी जेब से कर रहा है। जबकि निगम के सरकारी बंगले में रहने वाले आयुक्त तारन सिन्हा बिजली बिल का भुगतान अपनी जेब से कर रहे हैं।
मुफ्त बिजली नहीं खुद कमिश्नर तारन प्रकाश सिन्हा ने कहा है कि सरकारी आवास में मुफ्त बिजली का प्रावधान ही नहीं है। वे खुद कटोरा तालाब के सरकारी आवास में रहते हैं। सरकारी दर से मकान का किराया देते हैं। मगर जितनी बिजली का उपभोग करते हैं, बाकायदा उसका मीटर रीडिंग के मुताबिक पैसे देते हैं।
निगम इंजीनियर को मकान नहीं नगर निगम के जल विभाग के कार्यपालन अभियंता एके मालवे को फिल्टर प्लांट में मकान अलॉट होने के बाद भी नहीं मिल रहा है। एफ टाइप के क्वार्टर में पीएचई के अफसर काबिज हैं।
कमिश्नर तारन प्रकाश सिन्हा ने श्री मालवे को मकान अलॉट करने की बाकायदा नोटशीट भी चलाई है। मगर इसके बाद भी पीएचई के अफसर मकान खाली नहीं कर रहे हैं। मालवे प्रतिदिन दुर्ग से अप डाउन कर रहे हैं।
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